समानता का अर्थ व परिभाषा
समानता से आशय है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी प्रगति एवं अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए समान अवसर प्राप्त हों तथा प्रत्येक व्यक्ति के साथ समान व्यवहार किया जावे । किसी वर्ग विशेष को विशेषाधिकार प्राप्त ना हो । इस प्रकार कहा जा सकता है कि अवसर की समानता ही सही अर्थ में समानता है यानी प्रत्येक व्यक्ति को विकास के समान अवसर प्राप्त हों ।
डी.डी. रिफेल के अनुसार “समानता के सिद्धांत से तात्पर्य है कि सब लोगों के बराबर अधिकार हैं और मूलभूत मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि आवश्यक है । इसके अंतर्गत मानवीय समानताओं के विकास तथा उनके प्रयोग के अवसर भी आते हैं ।”
बार्कर के अनुसार “समानता का अर्थ है कि अधिकारों के रूप में जो सुविधाएं प्राप्त हो और उसी मात्रा में वे सुविधायें दूसरों को भी उपलब्ध हो तथा दूसरों को जो अधिकार प्रदान किए जायें,वे मुझे भी अवश्य मिले ।”
लास्की के अनुसार “समानता का अर्थ यह नहीं है कि प्रत्येक व्यक्ति के साथ एक जैसा व्यवहार किया जाए अथवा प्रत्येक व्यक्ति को समान वेतन दिया जाए । यदि ईंट ढोने वाले का वेतन प्रसिद्ध गणितज्ञ या वैज्ञानिक के बराबर कर दिया गया तो इससे समाज का उद्देश्य ही नष्ट हो जायेगा । इसलिए समानता का अर्थ है कि कोई विशेषाधिकार वाला वर्ग न रहे तथा सबको उन्नति के समान अवसर मिलें ।”
समानता की नकारात्मक अवधारणाएं
मानव-मानव के बीच प्रकृति से ही कुछ असमानताऐं पाई जाती हैं । शिक्षा योग्यता तथा प्रतिभा से भी कुछ लोगों में अंतर पाया जाना स्वभाविक है अतः इस दृष्टि में वे समान नहीं हो सकते हैं । समानता के नकारात्मक रूप में समानता का अर्थ वर्ग विशेष की विशेषाधिकारों को समाप्त करना है, जो जन्म, संपत्ति, धर्म अथवा रंग के आधार पर कुछ व्यक्तियों को प्राप्त होते हैं । इसका तात्पर्य अक्षरश: समानता स्थापित करना नहीं क्योंकि सभी व्यक्ति एक समान नहीं हो सकते । कुछ योग्य होते है तो कुछ आयोग्य, कुछ बलवान होते हैं तथा कुछ निर्बल, इनकी आवश्यकताएं भी एक समान नहीं होती । संक्षेप में इन विभिन्न तत्वों को स्वीकार करते हुए समानता का अर्थ उन विषमताओं को दूर करना है जो नैसर्गिक नहीं है तथा समान अवसर के अभाव में उत्पन्न हो गई हैं ।
समानता की सकारात्मक अवधारणा
समानता का वास्तविक अर्थ है एक जैसे लोगों के साथ समान व्यवहार करना । समाज में प्रत्येक व्यक्ति का समान महत्व है अतः समाज तथा राज्य में प्रत्येक व्यक्ति को अपना विकास करने के लिए समान अवसर प्राप्त हो तथा समाज में राज्य सभी व्यक्तियों के साथ निष्पक्ष आचरण करे । जाति, धर्म, भाषा, रंग, वंश, लिंग, संपत्ति, नस्ल और राष्ट्रीयता के आधार पर व्यक्ति व्यक्ति के बीच भेद नहीं किया जाये ।
समानता के प्रकार
समानता के निम्नलिखित 9 प्रकार हैं-
1.प्राकृतिक समानता- प्राकृतिक समानता के प्रतिपादकों का मानना है कि प्रकृति ने सभी मनुष्यों को एक समान बनाया है । प्रकृति ने उनमें कोई भेदभाव नहीं किया है । सभी प्रकृति के नियमों का पालन करते थे । यदि प्रकृति ने सभी मनुष्यों को समान बनाया है तो समाज व राज्य को उनमें भेद करने का कोई अधिकार नहीं है । हालांकि वर्तमान में यह धारणा अमान्य है क्योंकि बेशक प्रकृति ने सबको समान बनाया हो लेकिन व्यक्तिगत गुणों व अनुभवों में हर व्यक्ति समान नहीं हो सकता है ।
2.नागरिक समानता – नागरिक समानता से तात्पर्य है कि राज्य के सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त हों तथा राज्य अपने नागरिकों के साथ किसी तरह का कोई भेदभाव न करे । नागरिक समानता की स्थापना के लिए कानून की व्यवस्था की जाये तथा कानून, न्यायालय व दंड की व्यवस्था को समान बनाया जाये ।
3.सामाजिक समानता- सामाजिक समानता से तात्पर्य समाज में विशेषाधिकारों की समाप्ति से है । जाती,धर्म, नस्ल,वंश, वर्ण व सम्पति के आधार पर किसी के साथ भेदभाव न हो । इसके अलावा दास प्रथा, बेगार व छुआछूत जैसी सामाजिक कुरीतियों का अंत हो । समाज में महिला व पुरुषों की स्थिति समान हो ।
4.कानूनी समानता- वर्तमान में लोकतांत्रिक व्यवस्था में कानूनी समानता का सिद्धान्त प्रचलन में है । राज्य कानूनी समानता की स्थापना करके ही विषमताओं का उन्मूलन कर सकता है ।
5.राजनीतिक समानता- राजनीतिक समानता से तात्पर्य है कि लिंग,जाती,धर्म, नस्ल व सम्पति के आधार पर किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव किये बिना सबको शासन में भाग लेने के समान अवसर प्रदान किये जावे । राजनीतिक समानता में सभी नागरिकों को समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं । इन अधिकारों में वयस्क मताधिकार, राजनीति दलों का गठन करने, किसी भी पद के लिए प्रत्याशी बनने, सरकारी पद प्राप्त करने व सरकार का गठन करना आदि शामिल है ।
6.आर्थिक समानता-आर्थिक समानता से आशय एक ऐसी व्यवस्था से है जिसमें सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के जीवन की न्यूनतम या बुनियादी आवश्यकताओं की सुविधा प्राप्त हो ।
आर्थिक समानता में मुख्य रूप से निम्न तत्व शामिल हैं-
- समान कार्य के लिए समान वेतन दिया जाये । इस मामले में स्त्री पुरुष के बीच कोई भेदभाव नहीं हो ।
- प्रत्येक व्यक्ति को जीवन की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति करने का अवसर उपलब्ध हो । इन आवश्यकताओं में रोटी कपड़ा मकान शिक्षा तथा चिकित्सा को शामिल किया जाता है ।
- धनिक तथा निर्धन के बीच संपत्ति की विषमता न्यूनतम हो ।
- सभी को रोजगार के उचित अवसर उपलब्ध हो ।
- लोगों को बेकारी, अपंग होने की स्थिति तथा वृद्धावस्था में सामाजिक सुरक्षा प्रदान की जाये ।
- उत्पादन और वितरण के साधनों पर नियंत्रण हो ।
- मानव द्वारा मानव का आर्थिक शोषण नहीं किया जाए ।
- अर्थव्यवस्था का स्वरूप समाजवादी तथा लोक कल्याणकारी हो ।
- प्रत्येक व्यक्ति को अपने श्रम का उचित पुरस्कार प्राप्त हो।
7.शिक्षा की समानता- शिक्षा की समानता से तात्पर्य राज्य द्वारा अपने सभी नागरिकों के साथ धर्म, वर्ण, लिंग, नस्ल व जाती का भेदभाव किये बिना समान शैक्षणिक अवसर उपलब्ध कराना है ।
8.अवसर की समानता- अवसर की समानता ही समानता को वास्तविक स्वरूप प्रदान करती है । राज्य अपने नागरिकों को समुचित विकास के समुचित अवसर प्रदान करे ।
9.संस्कृतिक समानता- संस्कृतिक समानता से तात्पर्य है कि राज्य द्वारा बहुसंख्यक व अल्पसंख्यक वर्गों के साथ समानता का व्यवहार किया जाये । उन्हें अपनी भाषा, लिपि तथा संस्कृति की रक्षा करने का समुचित अवसर प्रदान करने किया जाये । भारत के संविधान में सांस्कृतिक समानता प्रदान की गई है ।
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